कुर्शी के लिए सब कुछ करूँगा।
लेखक ― नितिन कुमार भांडेकर
सुझाव:―
बहुत दिनों बाद मैंने अपनी कलम पकड़ी, सोचा क्या लिखूँ अब ! दिमाग में कुछ सूझ नहीं रहा था। शायद मेरी बुद्धि कहीं घास चरने चली गयी थी। अब सरकारी स्कूल से शिक्षा प्राप्त करने वाला मैं अदना सा लेखक आखिर किसी विषय पर कितना ही लिख पाऊंगा। जहां पर हमारे शिक्षकों को उस जमाने में 40 हजार तनख्वा मिलता था वहीं निजी विद्यालयों के शिक्षकों को 5 से 7 हजार का वेतन मिलता था। किंतु हमारे समय में भी निजी विद्यालय के छात्र ही जिले भर में अपनी कक्षाओं में प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण हुवा करते थे। और हम सरकारी स्कूल के छात्र रो धो के पास हो जाते वही बहुत बड़ी उपलब्धि हुवा करती थी।
वर्तमान परिवेश में अब बच्चों को एक सीमित कक्षा तक उत्तीर्ण करना अनिवार्य कर दिया गया है। वहीं इंग्लिश मीडियम स्कूल भी खोल दिया गया है जिसमें नौकरी से लेकर पढ़ाई तक लॉटरी सिस्टम अपनाई जा रही है। तो सरकारी स्कूल में जो बच्चे पढ़ रहे हैं जहां पर 25 से 90 हजार तक कि वेतन पाने वाले बहु प्रतिभा के शिक्षक एवं शिक्षिका अध्ययन करवा रहे हैं। मतलब क्या है? क्या इनके पढ़ाने में कोई कमी है?
क्या आप सरकारी स्कूल में अपनी योजना को मूर्त रूप नहीं दे सकते? क्या सारी सुविधाएं सरकारी स्कूल को नहीं दिया जा सकता? जिससे अध्ययन का स्तर और स्कूल का स्ट्रक्चर बदला जा सके।