माननीय महोदया के संरक्षण में हो रही है भ्रष्टाचार की नई नई लीला……
नितिन कुमार भांडेकर―
पत्रकारिता के क्षेत्र में सफलता की सीढ़ी पर कदम रखते हुए युवा साथी , मेरे प्रिय अनुज ने जलपान ग्रहण करते हुए मुझसे एक प्रश्न पूछ लिया। हे ज्येष्ठ भ्राता विकास की पुल पानी में बह गया । आप इसमें किसकी त्रुटि मानते हो?
हमने विस्तार से उत्तर देते हुए कहा― हे अनुज आपने ईश्वर समतुल्य इस धरा पर अवतरित साक्षात विश्वकर्मा रूपी ठेकेदार पर बेबुनियाद भ्रष्टाचार का आरोप मढ़ दिया है। हे बुलेटश्वरराजा आपको तनिक यह ज्ञात नहीं हुवा कि इन्हें स्वंय ईश्वर की दोनों करकमलों सहित महोदया की असीम आशीर्वाद की कृपा दृष्टी प्राप्त है। जल में समाहीत रामसेतु तुल्य सेतु में आई प्राकृतिक जल आपदा की बहार भी इनकी ही विशेष कृपा दृष्टि से सँभव हो पाया है। ऐसे देवी कृपा प्राप्त अध्दभूत विलक्षण प्रतिभा के धनी उत्तमपुरुषार्थ वालों पर व्यर्थ ही संका कर भ्रष्टाचार का प्रश्नचिन्ह लगाना अशोभनीय कृत्य है। ज्ञात हो हे भास्कर दूत अनुज, इन धनलोभी माननीय की छत्रछाया में ही रामसेतू की तर्ज पर अर्ध जल पर समाहीत ढहता हुवा एवं तैरता हुवा सेतु नियत समयावधी में निर्मित हो रहा था।
भला हो सावन की वर्षा ऋतु का जिसने मेघ से तीव्र वर्षा प्रवाहित कर नदियों में प्रवाहीत जल की धारा के वेग को तीव्र कर दिया जिसके चलते रेत से बने सेतु ढह कर जल में बह गया। निसंदेह जल की धारा ने यह कुकृत्य चेष्टा करते हुए महोदया के क्षेत्र की विकास सेतु को जल में समाहित कर माननीय की नजरों में जघन्य अपराध किया है। नियत समयावधि में पूर्ण हो रहे विकास के कारज को जल में ही समाहित कर समाधी दे दीया।
हे अनुज , नाहार के उत्कृष्ट कार्यों से आये इस बाहर का जिस तरह से दृश्य चलचित्र के माध्यम से आपने अवगत कराया है । ऐसा प्रतीत होता है मानो असंख्य भुरभुरे रेत और मिट्टी से तैयार होने वाला सेतु , निर्माण से पूर्व ही जल की तेज धारा प्रवाह को सहन न कर पाई हो। निर्मित सेतु को मजबूती प्रदान करने वाले आधे से अधिक ठोस कागज के वस्तु माननीय को भेंट जो चढ़ चुकी थी।
रही बात जनता की, तो क्षेत्रीय जनता ने विकास न सही लेकिन पुल के अतिउत्तम सरंचना के रूप में विकास की पहली झलक तो देख ही लिया था। वर्षों से बिना पुल के रह रहे थे। अब नाव-डोंगी से गुजारा कर लेंगे तो इसमें कौन-सा मंगल ग्रह पर जीवन का लोप होने वाला है। वैसे भी जनता नामक जीव की सहनशीलता एमआरएफ टायर की तरह मजबूत होती है। माननीयों के आश्वासन की हवा पर दो-तीन पीढ़ियों तक का सफर ये आराम से काट ही लेंगे। जिस प्रकार समाज में विवाहोपरांत विदाई और सुहागरात की विधि होती है, वैसे ही हमारे यहाँ हादसों के पश्चात विपक्ष का विलाप और जांच आयोग का गठन अनिवार्य प्रक्रिया है। किंतु यहां पर यह भी प्रक्रिया असंभव होते दिखाई पड़ रहा है। करोड़ों रुपए का सेतु गुल हो गया। मीडिया और विपक्ष का दबाव यहां कमजोर हो गया । माथा और पच्चीयों की जांच समिति का भी गठन नहीं हो पाया। जांच आयोग घटनास्थल पर पहुंचतने से पूर्व ही संतरी से कनत्री तक निर्माण एजेंसी की तत्कालिक सेवा पहुंच गई। सेतु का पाया जल में एवं माया माननीयों के महल में , ‘यह तो हद हो गया भारतीय मुद्रा की तरह सारा पुल ही भरभराकर गिर गया…’