मैंडम जी नराज हैं , आप मिलने नहीं आ रहे हैं। क्या बात है……… मैडम से ज्यादा श्रीमान के धौंश चल रहे हैं।
व्यंग्य बाण :
नगर में इन दिनों एक मैडम के श्रीमान की चर्चा चुपके चुपके खुब हो रही है , आखिर हो भी क्यों नहीं क्योंकि अपने ये श्रीमान जी मैडम के श्रीमान जी जो ठहरे। अपने इस श्रीमान पर न केवल मुलाजिम बल्कि नगर के अन्य लाभदायक माननीय भी मजबूरी में बहुत मेहरबान हैं । जनता की मेहरबानी के कारण आज नगर में अपने श्रीमान जी ऐशो आराम से जो रह रहे हैं। खैर …इनका ठसन ऐसा है कि बड़े बड़े टाटाज बिड़लाज भी इनके सामने अब बौने लगने लगे हैं। कुछ महीने पहले तक अपने ये श्रीमान जी अपनी पुरानी खटखटटिया में चला करते थे। बाद में इन्हें क्या आभास हुआ कि पुरानी जगह नई लंबटईया ले आए। इन्हे शुरू से ही अपने लोगों को घोंचून बनाने की महारत हासिल है लेकिन अपनी कबरबिज्जू पहुंच और बेबाक पैरवी की वजह से इन्होने अपने ही वर्ग के दुसरों को इतना पीछे छोड़ दिया मानो उनमें जरा भी काबिलियत है ही नहीं थी। खातू कचरा बेचते-बेचते इनका दिमाग भी अब खातू की तरह हो चला है। इन्होंने सूबे के कई माननीय तथा कुछ प्रभावी एवं सफेदपोश असरदारी लोगों के यहां ऐसी पैठ बनायी है कि इन्हे आज नगर को कई तरह से अस्तित्व में विकसित करने की जिम्मेदारी भी सौंप दी गयी। वैसे तो अपने ये फटफटिया कम खटखटिया वाले श्रीमान जी नगर में एक साधारण विश्वकर्मा की तरह दिखते है लेकिन अंदरखाने की चर्चा के मुताबिक इन्होने अपने पैतृक ग्राम से लेकर वर्तमान निवाश स्थान के अलाव राज्य की एक नगर में बहुत बड़ा सपनों का महल बना रहे हैं। आखिर महल बने भी क्यों नहीं अपने इस श्रीमान पर इनके नगर के कई विभाग के मुलाजिम की कृपादृष्टि एक फोन कॉल पे जो हो रही है। सुनने को तो ये भी मिल रहा है कि श्रीमान के फोन करने की स्टाइल मुलाजिमों को बेवजह दहशत में डाल देता है । अब डर कहो या इनके वसूली करने के नयाब टेक्निक कहो। पर कुछ भी कहो , है तो इनके बात करने की टेक्निक जानदार । इनकी बातों में दम है बॉस …..( ककज युग ब्रो)
श्रीमान के कारनामें यहीं तक नहीं रुकी , इन्होंने तो अपनों को भी नहीं बक्सा…. जनाब। तभी तो नगर के प्रथम नागरिक से ही हिस्सेदारी की मांग कर डाली , फिर क्या था नगर के प्रथम नागरिक ने आंखें तरेरते हुए श्रीमान को साफ इनकार दिया। शायद यही बात श्रीमान जी के दिल को तीर की तरह लग गयी । तब से छोटे बड़े बैठकों में सत्यनारायण की प्रशाद के तर्ज पर बांटे गए प्रतिनिधियों में से कुछ चाटू कार को ही बुलाकर बिठाया जा रहा है । किन्तु नगर के प्रथम नागरिक एवं उनके साथियों को पूछा तक नहीं जाता। इन्हें तो चाय के टपरी पे पता चलता है कि आज गोल्डन , शीलवर, ब्लैक, नीले अंबर के आंगन में गुप्त गु करने बैठे थे।
श्रीमान जी के दरबार में बराबर दोनों टाइम हाजिरी देने वाले खेमें को आजकल पदोन्नित पे पदोन्नति दी जा रही है । जिसे देख कर एक वाट्सपिया प्रतिनिधि ने अपनी डीपी लगाकर लिखा है कि जो अपने घर की सीट को जीत नहीं पाए वो अब नगर की बागडोर संभालेगें। ऐसे ऐसे टीपा टिप्स से नगर के सियासत पे चार चांद लग रहे हैं। भला ऐसा भी कोई जले पे नमक रगड़ता है क्या जनाब।
जिसकी आजकल चौक चौराहे के चाय टपरी से लेकर भजिया के दुकान तक खटखटिया वाले श्रीमान जी और उनके त्रिमूर्तियों की चर्चा जोरों से है।
सुना है ये अपनी पहुंच और पद की पैरवी का बखान करने से भी परहेज नहीं करते। खुद तो एक तरह के नए नवेले विश्वकर्मा हैं ही , अपने अधीन चल रहे कार्यो के देखरेख के लिए अब प्राइवेट अनुभवी विश्वकर्मा को भी बहाल कर रखा है , जो रोज इन्हे नए नए आईडियाज देते हुए आर्थिक लेखाजोखा करने में मदद करते हैं। चर्चा तो यह भी है कि मैडम के चलते इनकी इतनी पहुंच बनकर बढ़ गयी है कि ये अपने ही वर्ग के कुछ पुराने लोगों को आजकल तबज्जो देना तो दुर उन्हे विभाग के काम निपटाने के हों या सेटल करने के मामले से भी दुर रखने लगे हैं।, कोई कोर कसर नही छोड़ रहे । बहरहाल श्रीमान जी नगर में विकास की गाथा लिखने के साथ साथ अपने घर और जेब के विकास में आर्थिक महल बनाने में भी ध्यान लगा रखे हैं। लेकिन कंबख्त ये कलम वाले इनके आर्थिक विकास पर राहु केतु बन गए हैं। अब इन्हें खुश करने के चक्कर में श्री मानजी के खुद के आर्थिक विकास रुक गयी है। अब लाखों की कागजी पोस्टर बैनर लगवाकर अखबारों में शो बाजी करवाना इन्हें राश तो नहीं आता पर क्या करें मजबूरी है जो कई अरसों से रीत के रूप में चली जो आ रही है।
अब क्या करें, श्रीमान जी मैडम का नाम ही लेकर ही सही , सभी जुगाड़ के जगहों में अपना जुगाड़ मेन्ट कर मेंण्टेनेश का कार्य कर रहे हैं। और यही कह रहे हैं की आप मैडम से मिलने नहीं आ रहे हैं । मैडम बहुत नराज है। अब मैडम नराज है या श्रीमान ? ये तो श्रीमान ही बता सकते हैं। खैर… जिन्हें श्रीमान का अचानक फोन आ जाये तो उन्हें हमारी एक ही सलाह है कि साहब मैडम से मिलकर उनकी नाराजगी दूर कर ही दें। खा म ख क्यों खतरा मोल लेना आखिर सबके पेट का सवाल है। सुनने में तो ये भी आ रहा है कि इनके शुभचिंतक मैडम को खुश करने इतना बिजी है कि दोनों टाइम की दूकानदारी एवं पैरवी छोड़कर अपनी हाजिरी सुबह शाम तक दे रहे हैं। अब ये अपना कद ऊँचा करना चाहते हैं या पद ? जो भी हो इसे चापलूसी ही कहेंगे। आजकल त्रिमूर्ति श्रीमान के साथ साथ मैडम जी को ज्ञान देते हुए चाणक्य नीति की भी शिक्षा दे रहे हैं। वकाई इनके इर्द गिर्द रहने वालों की अपनी गरिमा मैनेज करने की कला काबिलेतारीफ है। अंत में हाल ही में एक वाक्या पर नजर डालते हैं। इनके लाड़साहब संगीत सीखते सीखते एक सुंदरी को अपने नाट्य कला से झकझोर कर दिया था जिसे दबाने के लिए इनके नुमाइंदों ने पूरी ताकत झोंक दी थी ।
क्रमशः आगे…… इन्तेजार करिए।