चाचा बोले…
▪️ख़बर सुनने को मिल रहा है कि नगर के एक निजी विद्यालय का प्राचार्य इंग्लिशानन्द स्कूल के खुलने से काफी टेंशन में है। बच्चों को पुस्तकें खरीदने , खूब प्रताड़ित कर रहा है।
ख़बर सुनने को मिल रहा है कि नगर के एक निजी विद्यालय का प्राचार्य इंग्लिशानन्द स्कूल के खुलने से काफी चिंतित है। बच्चों को पुस्तकें खरीदने , खूब प्रताड़ित कर रहा है। चाचा – भतीजे तुमने ठीक सुना है , नगर के इस विद्यालय में पढ़ाई का स्तर नए जिले के हिसाब से उच्च स्तर का जो है। भतीजा – चाचा लेकिन हमारी सरकार के पुस्तक भी तो अनिवार्य एवं गुणवत्तापूर्ण है न। चाचा – निजी स्कूल का भी तो पेट है, उसे भी तो भूख लगती है। भतीजा – आप तेनालीराम की तरह पहेलियां मत बुझाइए चाचा जी।
चाचा – आप भी भतीज बड़े नादान हो , ये निजी विद्यालय पढ़ाने के साथ साथ अपनी निजी बैंक बैलेंस भी तो बढाते हैं न। पर इंग्लिशानन्द स्कूल के खुलने से इनके पेट पर दाऊ जी ने जाने अनजाने में लात जो मार दी है जिससे अब इनके हाथ पांव फूलने लग गए हैं। भतीजा – वो कैसे चाचा जी। चाचा – सभी पालक ऑनलाइन एडमिशन फार्म भर चुके हैं। जिनके बच्चे इस निजी स्कूल में पढ़ रहे हैं। भतीजा- क्या इन्तेजार ? चाचा – सभी पालक अपने बच्चों का लॉटरी से चयन होने का बेशब्री से इन्तेजार कर रहे हैं। भतीजा – अच्छा… अच्छा… लेकिन चाचा जी इंग्लिशानंद में तो सिर्फ 50 सीट हैं और नए जिले के सभी विद्यालयों में ढेर सारे बच्चे पढ़ रहे हैं। चाचा – अब ये इंग्लिशानंद की क्षमता पर निर्भर करता है कि ये कितनों को इंग्लिश पढा पाता है और कितना सफल हो सकता है? भतीजा – प्राचार्य को नियम कानून से डर नहीं लगता होगा। चाचा – सबके जेब भर देता है तो फिर क्यों डरेगा! आखिर सबका पेट है सबको भूख लगती है। भतीजा – निजी स्कूल के पालक अब क्या करेंगे ? चाचा – क्या करेंगे…इन्तेजार? लॉटरी से चयन हो गया तो बल्ले बल्ले है। चयन नहीं हुवा तो… सर्द मौषम है , बच्चों को वैसलीन लगा कर उसी स्कूल में छतरी पकड़ा कर हजारों रुपये के पुस्तक खरीदकर भेजेंगे।
भतीजा – पर इंग्लिशानंद का तो सोसायटी रजिस्ट्रेशन भी नहीं हुवा है , आर्किटेक्चर की अनुमति भी नहीं मिली है। न ही लैब है, न तो स्पोर्ट्स है, हमारे जिला का…!! और मेरे पास तो इसके ऑनलाइन डाटा रूपी सबूत है। और न तो सिविल अनुमति मिली है….. फिर भी इतना शोर शराबा हो रहा है। चाचा – धीरे धीरे सब हो जाएगा , अभी तो सफलता के कशीदे बुनना है । सब जुगाड़ में लगे हैं …. अब कद्दु कटेगा तो नीचे से लेकर ऊपर तक बटेगा न भतीजे। भतीजा – मैं समझ गया चाचा जी , कद्दू की सब्जी और हलवा मुझे बहोत पसन्द है। यमी…. यमी….. चाचा – अरे धीरे बोलो भतीजे, यहाँ कद्दू की सब्जी और उसका हलवा खाना सबको पसन्द है। अभी तो कड़ाई में तेल डालकर छौंक डाला गया है। सब्जी कटकर पका नहीं है । और उसे सब को बांट बिराज कर खाना भी तो है न… भतीजा – पर अभी तक तो पढ़ाई शुरू भी नहीं हुई है। न अध्यापकों की नियुक्ति हुई है। चाचा – अरे बुड़बक , तुम ही ने तो बताया न अभी , अनुमती नहीं मिली है करके। भतीजा – अरे….. हाँ , अब क्या होगा फिर इंग्लिशानन्द का ? चाचा – अब इसका तो दाऊ जी ही मालिक है । भरोसा है न हम सबको उन पर….?