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अपने कुल की दीपक जला कर दिखा दिया है इन्होंने अपनी प्रतिभा। भक्त कर हे हैं अब अपने हाथों की उंगलियों से मया । नगर के हर जुबान में है अब अजय राम का नाम , कह रहे हैं इसके बिना जीवन का नहीं है आधार । विनय के साथ फूल अर्पण कर मौन का आलम है कैलास पर्वत पर । अरुण के झोंके ने दी गर्माहट , हो रहे कहीं शत्रु विचलित , यह देख नजारा। रूपों के इंद्र ने संभाल रखा है प्रकाश को।
शेष : अगले विशेषांक में