(व्यंग्य) सियार को तो अंगूर बिना चखे खट्टे ही लगते हैं।
―अंकित चोपड़ा की जुबानी :― युवाओं को लगवाना है वैक्सीन जरूरी , क्योंकि यही है हम सबके जीवन के लिये जरूरी।।
मैं नितिन कुमार भांडेकर आप लोगों को एक व्यंग्य के साथ साथ एक प्रेरक वाक्या सुनाता हूँ। रोज शाम की तरह मैं भी अपने खबरों का पिटारा समेट कर, कलम की नोक को विराम देते हुए खबरों का सटर गिरा कर अपनी कलम को जेब में रखते हुए , अपने घर को जाने निकला ही था कि अचानक अंकित चोपड़ा का फोन काल मेरे मोबाइल पर घनघना उठा , अब बड़े भाई हैं…… जो मेरी फिक्र करते हुए रोजाना हाल चाल जानने मुझे फोन कर पूछ परख कर लिया करते हैं ।
उन्होंने मुझे कुछ दवाइयां देने बुलवाया , मैं भी तुरंत अपनी डुगडुगी पर सवार होकर उनके पास जा पहुंचा। तो देखा कि किसी भगवा रंग के सलवारी दिमाग के चतुर प्राणी को कुछ कह रहे थे। दो गज की है दूरी समझो भाई मजबूरी । बिना मास्क का है अगर आपका चेहरा , जल्दी पहन लोगो भाई कफ़न का शेहरा।
उनके थोड़ा पास गया तो पता चला…… कि मुफ्त में लग रहे वैक्सीन पर आपस में आरोप प्रत्यारोप का दौर चल रहा था । मैं उनकी बातें सुनकर समझ गया की सियार के लिए अंगूर तो खट्ठे ही होते हैं तब तक दुनिया के भी सारे अंगूर खट्टे ही लगते हैं। उन्हें पता है कि अंगूर मीठे हैं, लेकिन जब तक न उन्हें मिलें तब तक खट्टे कहना तो उनके डीएनए का परिचायक है ये हम सब जानते हैं । अब अपने सियार स्वभाव वाले प्राणी को वो समझा-समझा कर अपना सर ओखली में दे रहे थे। इसी बीच अंकित भाई से सियार ने पूछ ही लिया― हमने सुना है कि वैक्सीन की दोनों डोज़ के बावजूद बंदा संक्रमित होता जा रहा है। फिर इसमें संक्रमण न होने की गारंटी किधर है?
जवाब देने से पहले ही अंकित भाई ने क्रॉस चेक करते हुए पूछा– क्या आपने वैक्सीन ली है चतुर प्राणी ? मुझे जैसी आशा थी वैसा ही उत्तर दिया – नहीं। चूंकि जो वैक्सीन ले चुका हो उसे इसका स्वाद पता है और इसका तो वैक्सीन लेना बाकी था सो वैक्सीन रूपी अंगूर का स्वाद तो खट्टा होना तो स्वाभाविक था। अब जानवरों को कुछ बातें मार-पीट कर समझा सकते हैं। पर ये तो एकदम साबूत जीते-जागते इंसान हैं। इनके साथ तो ऐसा व्यवहार नहीं कर सकते न ! हैं तो ये टेढ़े लेकिन दिल के बड़े अच्छे हैं। आखिर टेढ़ों को टेढ़े तरीके से समझाना पड़ता है। यही दुनिया का दस्तूर है। अंकित भाई भी ने इसी दस्तूर को निभाने के लिए अपनी 52 कला में से एक कला की पुरजोर कोशिश लगा दी।
लोमड़ी बाबू को खट्टे अंगूरों के भूत से बाहर निकालने के लिए पूछा– आप सियार जी मेरे पास यहाँ तक कैसे पहुँचे?
बदले में जवाब का तुक्का फेंकते हए कहा– बाइक पर !
वाह ! बहुत बढ़िया। तब आप एक काम कीजिए। आप अपना हेलमेट यहीं छोड़कर जाइए। मुस्कुराते हुए कहा।
कमाल की बात करते हैं। आप आदमी हैं या पाजामा ? भला कोई हेलमेट के बिना भी सफर करता है ? खुदा न खास्ता अगर कहीं ऊँच-नीच हो गयी तो मुझे जान से हाथ धोना पड़ेगा। क्या आपको मेरी जान की कोई परवाह नहीं है ? – सियार बाबू ने गुस्से में कहा।
चोपड़ा जी कहते हैं ….. अरे!-अरे! आप तो बुरा मान गए। आपको दुखी करना मेरा उद्देश्य नहीं था। अब आप ही बताइए कि हेलमेट पहनने वाले सभी लोगों की दुर्घटना थोड़े न होती है। वह तो सब किस्मत की बात है। इसीलिए मैंने आपसे हेलमेट मांग लिया। आप को तो गाड़ी चलाने का इतना अच्छा अनुभव है, भला बिना हेलमेट के सफर करने से आपको क्या होगा ? ऐसे हेलमेट का होना भी कोई होना है ? बेवजह में सिर पर इतना भारी भरकम बोझ धरे सफर करने से क्या लाभ ? – मैं पास खड़े उनके आपस के सब गुप्तगु देख रहा था जहां पर चोपड़ा जी ने उनके नहले पे दहला फेंकने की कोशिश की।
सियार बाबू का गुस्सा अब तक काबू में था। किंतु चोपड़ा जी की बतकही सुनकर उनकी मर्यादा का बांध टूट चुका था। अभद्र भाषा की डिक्शनरी में से दो-चार शब्द निकालकर उनके मुँह पर मारते हुए कहा– लगता है आप वैक्सीन लगने से बहक से गए हैं चोपड़ा जी। हेलमेट के बारे में ऐसी बहकी-बहकी बातें करना शोभा नहीं देती। इंसान हेलमेट इसलिए नहीं पहनता कि कोई दुर्घटना घटेगी। बल्कि दुर्घटना घटने पर गंभीर क्षति या फिर सिर पर भारी चोट लगने से बचने के लिए पहनता है। अब तो आपकी मोटी अक्ल में मेरी बात घुस ही गयी होगी। क्यों चोपड़ा जी….
चोपड़ा जी ने उनके गुस्से को हवा में फितूर करते हुए कहा– अब तो आपको समझ में आ ही गया होगा सियार भाई कि हमें वैक्सिन क्यों लगवाना चाहिए?
सियार बाबू फिर भी अपनी बात पर अड़े रहे और कहने लगे– लेकिन संक्रमण से सभी थोड़े ही न मरते हैं। ज्यादातर लोगों को हल्का-फुल्का संक्रमण होता है और चला जाता है!
यही तो ! मैं भी यही कहना चाहता हूँ कि दुर्घटनाग्रस्त से सभी लोग थोड़े ही न मरते हैं। ज्यादातर लोग छोटी-मोटी चोटों का शिकार होते हैं। ऐसे में हरदिन हेलमेट पहनकर जाने का क्या मतलब ! बेफिजूल में इस टोपे को सिर पर धरने का क्या फायदा? यूँ ही जा सकते हैं न ! इसलिए मेरी बात मानिए अपना टोपा यहीं छोड़ जाइए।
सियार बाबू घोर चिंता की डूब से बाहर निकले। और अपनी गलती पर काफी शर्मिंदा होते नजर आए। उनके आँखों में जान की कीमत साफ़ झलक रही थी। कहा– जान है तो जहान है। मैं बिना हेलमेट के सफर नहीं करता। तो अब मैं वैक्सीन भी लगवाऊँगा। इतना कहते हुए हेलमेट पहने और वहां से चलते बने । खट्टे अंगूरी भगवा सियार बाबू मीठे अंगूरी बाबू बनकर अपने रास्ते चलते बने। जिसके बाद चोपड़ा जी ने मुझे बुलाया और हमेसा की तरह मुझसे हाल चाल पूछा और कुछ दवाई दी । जिसके बाद मैं अपने घरौंदे को चलता बना ….. रास्ते भर सोचा कि इसे मैं एक प्रेरणादायक व्यंग्य जरूर बनाऊंगा ताकी हमारी युवाओं को इससे कुछ प्रेरणा मीले और वैक्सीन की महत्ता को हमारी युवा भाई बहन समझ सके।