फेंकुओं की बस्ती में लपेटुओं की फ़ौज ।। उच्च क्लास और लो क्लास की मौज।।
बड़े बुजुर्ग कहते हैं कि ‘दूर तक फेंकने’ वालों का सामना करने के लिए छप्पन इंच का सीना चाहिए होता है। और इस समय छप्पन इंच का सीना केवल ‘लिमिटेड’ लोगों के पास है। एक समय वो भी था जब 41 इंच का सीना जिसके पास था तो उसने कभी फेंका तो नहीं पर उसे आज के 56 इंच के सीने वाले ने कई सवाल दागे थे जिनका जवाब आज वो स्वंम देने से मुंह छिपाए बैठे हैं। ऐसे में इन फेंकु सम्राटों की हाँकबाजी, फेंकबाजी और गप्पबाजी को लपेटने के लिए थोक में इनके ही लपटन बाबुओं की फ़ौज खड़ी हो गयी है। और इनकी तो सख्त जरूरत भी पड़ती है। यह देश मेहनतकश, ईमानदार, समयबद्ध बहुमुखी प्रतिभाशाली बेरोजगारों को रोजगार दे न दे, लेकिन फेंकूओं के साथ लपटन बाबुओं को जरूर देता है। यदि आप में फेंकने और लपेटने की अपार क्षमता है, तो आप कभी बेरोजगार नहीं रह सकते।
सुनने में आया है कि आजकल फेंकु ह्यूमन रिसोर्स मैनेजरों को अपनी ‘दूर के ढोल सुहावने’ कंपनी में 41 इंच के सरदार की संजोए संपत्ति को बेचकर अपनी टीम में काम करने के लिए असंख्य फेंकूओं और लपटन बाबुओं की जरूरत है। यह कंपनी इतनी मनोरंजक और मनलुभावन होती है कि दिन-रात लोग इसी का गुणगान करते नजर आते हैं।
खैर…..यदि आप में फेंकु सम्राट और लपटन बाबुओं के गुण हैं, तो हो जाइए तैयार और आ जाइए इनके टीम के गली फेसबुकिया, गाँव इंस्टाग्राम, ब्लॉक व्हाट्सपपुर और जिला ट्विट्टराना में। फिर देखिए कैसे होती है बातों की खेती में, ऊटपटांग कुतर्की बीज की रोपाई, कुछ ही मिनटों और घंटों में लहलहाती रुपयों की फसल।
अगर आप यह सोचते हैं कि फेंकुओं और लपटुओं के बीच केवल बातों की उगाही होती है, तो यह आपकी बड़ी भूल है। इनके काम करने का तरीका बड़ा हटकर होता है। तर्क करने के लिए पुस्तक और कुतर्क करने के लिए खाली मस्तक की जरूरत पड़ती है। चूँकि जमाना ऑनलाइन और ज्ञान ऑफलाइन होता जा रहा है, इसलिए कुतर्कबाजों की संख्या में मच्छर के अंड़ों की तरह वृद्धि होती जा रही है। दोनों में अंतर केवल इतना है कि जहाँ अंड़ों से निकलने वाले मच्छर मात्र तर्कसंगत खून चूसते हैं तो वहीं कुतर्कबाज हर तरह का दिमाग। वैसे जमाना कुतर्कबाज नेताओं, फरेबियों, घंटाज्ञानधारियों का है, जिनकी सेवा, रक्षा तथा सेवा-सुश्रुषा में तर्कबाज आई.ए.एस., वकील, बुद्धिजीवी लगे रहते हैं। इससे यह स्पष्ट होता है कि जब तक धरती पर तर्कबाज हैं, तब तक कुतर्कबाजों का कोई बाल भी बांका नहीं कर सकता।
फेंकु सम्राट अपनी कंपनी में लपटुओं की भर्ती करने के लिए कुछ योग्यताओं की विशेष खोज करते हैं। जैसे कि , जो लपटु यह सिद्ध कर देता है कि हाथ से पकड़े हुए खरगोश के तीन पैर हैं, वही ढीठ, हिट और फिट कहलाता है। आँख-कान को लंबी छुट्टी देकर हठधर्मिता की शरण में जाने वाले लपटुओं की यहाँ बड़ी माँग होती है। फेंकुओं की कंपनी योजनाबद्ध ढंग से काम करती है। इसमें सबसे पहले फेंकु सम्राट किसी घटिया उत्पाद को बाजार में उतारते हैं। बिना परीक्षण के बंटवा भी देते हैं । इनकी देखा-देखी बुद्धिजीवी भी अपना उत्पाद उतारकर इनसे होड़ लेने लगते हैं। चूँकि बुद्धिजीवी अधिक सोचने वाले होते हैं, इसलिए उनमें एकता, समग्रता और संगठन बल की कमी होती है। जबकि फेंकुओं के उत्पाद का प्रचार-प्रसार लपटु सेल्स मार्केटिंग एक्जिक्यूटिव करते हैं, इसलिए उनमें एकजुटता, प्रबंधन और बेवकूफी की क्षमता कूट-कूट कर भरी होती है। वे झूठ, फरेब और धोखाधड़ी का इतना बढ़िया विज्ञापन करते हैं कि बुद्धिजीवी इनके झांसे में आए बिना नहीं रह सकते। वे बेरोजगारों में तारे गिनने जैसे रोजगार, रोगियों में वैक्सिन निराकार, पैदल चलने वाले प्रवासियों में वामन का ठगावतार रूप धारण कर पंचवर्षीय झूले में जनता को खूब झुलाते हैं। जनता भी झूले में झूल, सुध-बुध गंवाकर, फेंकुओं की बस्ती में लपटुओं की मस्ती लूटने में मशगूल हो जाती है। आलम ये है जनाब की फेंकूओं की रणनीति ने जीवन बचाओ विभाग के साहबों को टारगेट दे रखा है इधर टारगेट से ऊपर बिना पूछ परख के कइयों के तोते उड़ रहे हैं। कई स्टंप हो रहे तो कईयो के गिल्लियां उखड़ रही है। व्यापारी करोड़ो का नुकसान झेल रहे हैं तो आम जनता जरूरी सुविधाओं को तरस रहे हैं। दो गज दूरी इतनी हो गयी कि अब अपने भी पराये हो गए हैं , चेहरे पर रुमाल हटाओ तो भी अब पहचानने से इंकार कर रहे। आज जो स्तिथि है सिर्फ फेंकूओं की बेवकूफियों और लपेटुओं कि अंधभक्ति है।
आपदा को अवसर में आजकल हर वर्ग ऐसे बदल रहा है कि सृष्टि रचियता भी इनकी कलाकारी से चकित है। मिडिल क्लास का दर्द है जनाब ….. लो क्लास के हर हालात में मदद करने वाले हाथ उठ जाते हैं उच्च वर्ग की तो सात पुष्टि भी दौलत खत्म न कर सके। लेकिन मिडिल क्लास को हर कार्यालय , हर संस्थान , हर आदेश नियम में अपनी ही बलि चढ़ाना पड़ता है।