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◼️आपदा को अवसर में बदलते , सफ़ेदपोश की बैठक में वैक्सीन वितरण की अपनी रणनीति (व्यंग्य)
नितिन भांडेकर― (9589050550)
वैक्सीन और प्राण बचाऊ सभी टिके लगभग राज्य में आ चुकी है लेकिन एक सौ तीस करोड़ को चार दिन में दे भी तो नहीं सकते। यह स्वतंत्रता जैसी भी तो नहीं है न, कि आधी रात घोषणा की और पूरे देश के युवाओं को मिल गई। यह प्रशंसनीय बात है कि हम बिना सोचे विचारे कोई कार्य नहीं करते। अपनी विश्वगुरु इमेज का काफी ध्यान रखते हैं। नियमित कई बैठकें और राष्ट्र के नाम संबोधन कर ज़रूरी संकल्प लेते हैं तब जाके आगे बढ़ते हैं। वैक्सीन के उचित वितरण के बारे बैठक में सांस्कृतिक परम्पराओं के आधार पर काफी विचार विमर्श किया है। अविलम्ब निर्णय लिया गया, सबसे पहले समृद्ध लोगों के घर हमने पहुंचाया क्योंकि उनका स्वस्थ रहना हमारे लिए सबसे ज़रूरी था। उनके काम धंधे चलते रहेंगे तभी तो देश की राजनीतिक पार्टियों को चंदा मिल सकेगा। उनके बाद देश को चलाने वाले नेता, अफसर और विकास के ठेकेदारों को दी गई। इनको वैक्सीन लगाने के बाद यह एहसास होगा कि देश का शासन, प्रशासन और विकास सुरक्षित हो गया है। इसलिए चिंता की कोई बात नहीं है। आगे युवाओं के बारे में भी सोचा है रोजगार से ज्यादा टिका जरूरी है क्योंकि जान है तो जहांन है भाई….
बेमतलफीवर की बेवजह डिमांड―
जिन मरीजों को बेमतलबफीवर का डोज देने हमने योजना बनाई है उसमें कुछ विरोधी दल के लोग हमारी रणनीति पर मटिया पलीत कर रहे हैं। और अपने दल के लिए काफी चंदा जुगाड़ कर रहे हैं। अंधभक्तों जरा इस पर हमारे मुखपत्रों को खुलासे करने कहो। खैर…….. मरीजों के लिए भेजी गई बेमतलबफीवर का डोज का कालाबजारी अपनी चरम सिमा पर है दाऊ जी अपने कंट्रोल में रखने की बात तो कहते हैं लेकिन उनके नुमाइंदे इसकी बाजार में इसकी हजारों में नुमाइश कर रहे हैं। मैंने एक भजनखबरी मित्र से बात की जिसमें उसने अंदर की बात बताई जिसे मैं सुनकर हक्का बक्का रह गया । उसने कहा कि हमारी सोच थी कि शुरुवाती दौर में सरकारी कर्मचारियों के बारे में विचार करने की ज़रूरत नहीं, वे इतने समझदार होते हैं कि वैक्सीन सप्लाई में से अपने और अपने परिवार के सदस्यों के लिए आवश्यक डोज़ जैसे कैसे सुरक्षित कर लेंगे। उन्हें मौका मिलेगा तो अतिरिक्त डोज़ भी हथिया लेंगे, बचा माध्यम वर्ग, तो उनमें से जुगाडू बंदों ने अपना अपना जुगाड़ लगाना शुरू कर लिया है। वैक्सीन की अग्रिम ब्लैक शुरू हो चुकी है कुछ बंदे एक की जगह दो लगवाने की सोच रहे होंगे। जाति, धर्म, क्षेत्र आधारित राजनीति करने वाले पहले ही प्रबंध कर लेंगे कि किसको वैक्सीन मिलनी चाहिए और किस को नहीं। किन परिवारों को छोड़ना है, किनको किसी भी हालत में वैक्सीन नहीं मिलनी चाहिए, यह कार्यकर्ताओं को समझा दिया जाएगा। किसी की किसी से पुरानी खुन्नुस बची रह गई हो तो उसे निकालने का पूरा मौका दिया जाएगा। इस बीच नकली वैक्सीन भी आ चुकी होगी और आराम से बिक रही होगी एक दूसरे को ठगकर लोग खुश हो रहे होंगे। तीन हजार की चीज तीन लाख तक बेधड़क बिकेगी और जरूरत मन्द लोग खरीदेंगे भी। हमारे कौन सा बाप का जाएगा। …
वैक्सीन न मिल पाने वालों में असमर्थ, गरीब, नासमझ, नज़रंदाज़ किए गए कुछ खास किस्म के लोग ही रह जाएंगे। कमजोर इम्युनिटी वालों को वैक्सीन देने के बारे में आखिर में हमने अडल्ट एज का लिमिट तय कर सोच लिया है। क्यूंकि इनमें से जितने लोग हमारे सभ्य समाज से कम हो जाएं उतना बेहतर। ऐसे लोग निरंतर परेशानी पैदा करते हैं। बैठक के अध्यक्ष ने कहा, हम अपने लोगों की मदद कर सकें या नहीं पूरे विश्व समुदाय की मदद करें। सबसे पहले हम विश्वगुरु हैं। चुनाव और राहत प्रबंधन की प्रसिद्द तर्ज़ पर राहत पहुंचाने का अनुभव इसमें प्रयोग किया जा रहा है । चुनाव व आपदा के समय पूरा तंत्र एक होकर सहयोग करता है। वैक्सीन वितरण पर सूचना तकनीक से पूरा नियंत्रण रखना मुश्किल होगा। अनुभव व आंकड़ों के स्वादिष्ट पकौड़े बनाने में हम माहिर तो हैं ही। यह नैतिक कार्य सभ्यता, संस्कृति के आधार पर बिना किसी निम्न स्तरीय राजनीति के होना चाहिए। प्राण बचाऊ इन्जेक्शन की जिम्मेदारी जिले के मेडिसिन अधिकारी लपेटकर भाऊ को दे दी गई है , वो काफी अनुभवी हैं उन्हें हर किमती दवाई से हमारा और अपना पेट भरके के मुनाफा कमाना आता है वो सभी का अच्छे से ख्याल रखते हुए ऊपर बताये हमारे शख्त निर्देशों को ध्यान में रख कर कुछ खास वी वी आईपी को ही वितरण करेगा।