
*◼️अक्षत तृत्या के अवसर पर निश्चल आशीष प्रेम बरसा गया बेवजह खाखी पर……..*
लघु व्यंग्य प्रेरणा युक्त कथा।―
रोजाना की तरह रात्री को अपने कार्य पूर्ण करके घर लौटा ही था कि, मोबाईलवा पर रिंगटोन बज उठा। *अजी ऐसा मौका फिर कहाँ मिलेगा ………* मैंने भी समय नष्ट न करते हुए अपने हितैषी का फोन कॉल रिसीव किया । हितैषी ने दुवा सलाम करते हुए पूछा आप अभी घर पर हो क्या महोदय। मैंने हांमी भरते हुए जवाब दिया जी जी जी मान्यवर….।
आगे नगर का हाल चाल सुनाते कहता है कि *बेगानी शादी में आज अब्दुल्ला दीवाना था* मैंने कहा पहेलियाँ मत बुझाओ , खुलकर असल बात बताओ। कहने लगा चोरी छिपे हो रही थी नियम के उल्टे आज गुड्डे गुड़ियों के तर्ज पर 52 परी की शादी बाईपास पर । जहां पर कोई नहीं कर रहा था नियम का पालन ! *दो गज है दूरी मास्क है जरूरी ।* किसकी शादी हो रही थी मैंने यूं ही पूछ लिया उनसे…. थपाक से कहने लगा― 52 परी बिटिया की ! मैं बना था कर्ता धर्ता आये थे हमारे परिवार में विवाह सफल बनाने सभी इनके मामा चाचा काका फूफा भाई भतीजे। मैंने भी पूछ लिया कहाँ कहाँ से आये थे मेहमान भाई साहब जी…. कहने लगे नगर के सभी उच्च कुल के खानदानी रिवाज वाले लक्ष्मी पुत्र पधारे थे , इन्हें विरासत में मिली है बाप दादाओं से ऐसे मुहर्त में आकर सहयोग देने का बरदान। सभी आये थे एक साथ बिटिया 52 परी का करने सम्मान। घर का *यश* बढ़ाने उनका सौतेला भाई की भी थी उपस्तिथि। लाये थे जुगाड़ू यार के साथ ढेर सारा पैसों सहित खाने पीने रस मलाई। देना चाहते थे 52 परी बिटिया को जिसे ले गए बिना बुलाये आये खाखी बराती । मैंने कहा ―अच्छा अच्छा अच्छा…….. चाहत थी मेरी 52 परी बिटिया को दुं दहेज में पैशों का बंडल। खाखी ने पकड़ा दिया हमें बिन बात के लोटा और कमंडल।। मैंने कहा विस्तार से बताओ कमल के डंठल…..कितना गया जेब से इनके बन्दक।।।।।।
चटाई के साथ ले आया था उसका मामा *पराग युक्त* सफेद , भगवा प्रजाति के सूरजमुखी लाल फूलों से गुथी जय माला का हार जो *प्रतीक* था 52 परी की आपसी भाईचारे का प्यार। सभी समय पर पहुंच चुके थे 52 परी के अपने नवयुवा परिवार। विवाह शुरू हुई पंडित जी के हाथों से *आशीष* लेकर पूजा हुई कई बार। शाम होते ही *सूर्यकांत* को किया नमस्कार पहला गुरु है हमारा, न करो इनका तिरस्कार। इन्हें भी दो मौका दो चार।।। 52 परी के हम सब हैं रिस्तेदार , *सत्य ईश* है हमारे सुख दुख के यार। मत रोको इन्हें यार लगाने दांव इन्हें बार बार।।।
चल रही थी 52 परी के साथ बादशाह बेगम के फेरों का रश्म बार बार। इसी बीच पंडित जी भुल गये अपने मन्त्र उच्चार। घरातीयों में खुशि की लहर दौड़ चली थी क्योंकि 52 परी के दहेज में लाखों का चढ़ गया था चढ़ावा। उच्च कुल का जैसा है समाज में मान सम्मान , 52 परी के कुल के सम्मान में लाखों ले आया था परिवार। घर से *यश* बढ़ाने भी था सौतेला भाई। बस फिर क्या था अब चोरी छिपे हो रही थी शादी भाई। , बिना अनुमति के 52 परी की चल रही थी शादी, भनक मिली खाखी को अचानक आ धमक गई बिना स्टिकर के स्कोर्पियो की गाड़ी। जिसे देख भाग खड़े हुए 52 परी के घराती सभी मरवाड़ी । *आगे घराती पीछे बाराती, आगे घराती पीछे बाराती।*
कुछ देर पीछा करने पर जबरदस्ती दूल्हे के बाप को करनी पड़ी अगुवाई , जोर से कहने लगे ये हमारे दूल्हे के यार हैं सब बिन बुलाए है बराती। मौके से डर के तीन चार भाग खड़े हुए थे घराती। जो बचे थे घराती उसे अपने साथ ले आये सरकारी बाराती । जिसे समझ रहा था दूल्हे के बाप बाराती असल में थे ये सब सरकारी दमांद के बाराती। देख नजारा सबका हांथ पाँव फूल गया था। सरकारी दमांद के लट्ठ की मार से रोम रोम अब फूल के सबके खुल गया था। जैसे ही ख़बर मिली विवाह में पड़ गया है सरकारी अड़चन । दौड़े चले आये भाड़चन्द । 52 परी के रिस्तेदारों का आना था और बाकि , सुनी खबर तो उल्टे पाँव हो गए , जिन्हें आना था बाकी।। भाड़चंद की भी हो गयी थी दबे पांव एंट्री , देने लग गए अपने कार्यकुषलता का परिचय , दे रहे थे उच्च कुल की दुहाई । इस बार माफ कर दो न करो इनकी धुलाई।। इनमने एक ऐसा है फूल जो प्रतीक है घर के सूर्यकांत का …. जिससे हमारे कुल का बड़ जाता है यश । संगति थी अपने आदर्श बिरादरी के उच्च कुल के संगी साथियों के साथ , परन्तु घर का संस्कार मिला है इनके खून में महारथियों के साथ ।
सरकारी दमांद सुनकर झूठी आवाज में कहता है , बन्द करो बकवास काम की करो तुम बात । इस बात को दबाने तुम क्या दे सकते हो मेरा साथ। जिसे सुनकर कहता है भाड़चंद , अरे यह तो हमारा खानदानी आदर्श बन गया है नगर में हमने अपने आदर्श से अब तक अमन , आशीष तोड़ने का रिकार्ड बना लिया है। हर चीज बिकती है बस सामने वाला उसकी कीमत सही लगाए। बिक गयी खाखी, भूल गयी सब बातें बाकी। करो हम पर चढ़ावा पर हेड , नहीं तो बुक करवा लो इनके लिए अस्पताल में अभी से बेड।
फिर क्या था मामला गया वित्तीय जुगाड़ के भाइयों के पास 10 टका प्रेम के साथ अपना *निश्चल* *आशीष* न्यौछावर करते हुए की इनकी भरपूर सहायता। दहेज में मौज करने ले गए थे लाखों उससे भी धो बैठे थे हाथ। ले दे कर डेढा पेटी देकर बची है इनकी जान…… , ये सब सुना रहा था, इनका ही अपना, मुझे पूरा वृतांत।। हमने भी सिगरेट के धुएं का छल्ला बनाके शहर में उड़ा दिया पुरा वृतांत । सुबह होते ही जब सबने पढ़ी हमारे व्यंग्य भरी खबर। इनके 52 परी के अनुभवी बुजुर्गों को तत्काल दी खबर।।। फिर क्या था कुल का यश, घर का सूर्यकांत, आंगन के फूल का पराग, परिवार का आदर्श , मां का अमन, के साथ ……बुजुर्गों ने दोनों हाथों से आशीष के साथ ऐसा दिया आशीष की *सत्य ईश* भी है इसका गवाह। शाम होते तक इतनी की घर के लोगों ने पिटाई , भूल गए खाखी की भी धुलाई ,।।।।।।