मेरा आइडिया कुछ ज्यादा हिरो पंथी लगा क्या आप लोगों को… कैसे?
मेरा आइडिया कुछ ज्यादा हिरो पंथी लगा क्या आप लोगों को… कैसे?
सप्ताह भर पहले हमने कुछ जानकारियां दो चार सरकारी विभागों से मांग लिया था। जिसे प्राप्त करने चातक पक्षी की तरह इन्तेजार करते हुए आज सुबह से सरकारी कार्यालयों के चक्कर काट रहे थे । सुबह से दोपहर होने को थी पर पेट में अनाज का एक दाना भी अंदर नहीं गया था। एक कार्यालय के बड़े बाबू का अचानक संदेशा मोबाइल पर घनघना उठा , फिर क्या था हमने भी तत्काल उनके कार्यालय में अपनी आमदगी दे डाली। बड़े साहब के चेंबर में फरयादीयों की लंबी कतार लगी हुई थी। खैर , हमें तो बड़े बाबू से मिलना था।
भीड़ से सहसा एक अनुज हमें देखकर करीब आकर हमसे निवेदन करने लगा । भईय्या जी…. हम अपनी फरियाद बड़े साहब को अवगत कराकर एक आवेदन पत्र उन्हें हम सभी युवा मिलकर देना चाहते हैं । आपसे निवेदन था कि हमारी फ़ोटो खींच देते उस वख्त!
उन नवयुवाओं का नेतृत्व कर रहा युवक एक समय में हमारा छात्र
हुवा करता था जो फिलहाल आजकल वकालत की प्रैक्टिस कर रहा है। इस वजह से हमें प्रसन्नता हुई एवं हम झट से राजी हो गए। बड़े साहब द्वारा जैसे ही प्रवेश हेतु अनुमति प्राप्त हुवा हम सभी बिजली की तरह चमकते हुए एकाएक उनके सामने जा खड़े हुए।
बड़े साहब शिक्षा विभाग के एक मदमस्त शिक्षक को सुधारने के तरकीब अपने कलिंगो को सुझा रहे थे। साहब अपने प्रखर बुद्धि का नमूना रूपी तरकीबों के साथ एक शराबी शिक्षक को सुधारने हेतु आदेशों एवं निर्देशों के बाण छोड़े जा रहे थे। साहब बोल रहे थे कि जिस शिक्षक पर भी आपको संदेह है , जो शराब सेवन कर स्कूल जाता है उसे आप हर एक घण्टे में फोन करो और उससे वीडियो कॉलिंग में बात कर रिकॉर्डिंग करो । उसकी रिपोर्टिंग हर घण्टे लो और ग्रुप में डाल दो ताकि सबंधित शर्म से ही शराब पीना छोड़ दे। कैसा लगा … मेरा आदेश, मानोगे न …. कैसे। मैं आदेश दे सकता हूँ न आप लोगों को… अब बड़े साहब आम को अंगूर भी कहें तो कर्मचारियों को तो मानना ही पड़ेगा न कि ये आम नहीं अंगूर है बताना। साहब अचानक रुक कर फिर पूछते ” मेरा आइडिया कुछ ज्यादा हिरो पंथी लगा क्या आप लोगों को…” साहब को पलट कर जवाब देने की हिमाकत भला उनमें से कौन करे। फिर भी एक बंदा साहब के तरकीब की खुलकर तारीफ कर बैठा , कहने लगा साहब आपका तरकीब ही बेहतर है। बतौर बड़े साहब को यही तो चाहिए था कि कोई उनकी तारीफ खुलकर तो करे। साहब को पूर्ण आदेश देने का अधिकार मिला तो नहीं था फिर भी अपनी रौब दिखाते हुए फरमान जारी कर दिए। कर्मचारियों की मजबूरी आप समझ ही सकते हैं। जी सर… जी सर… खैर…
नवयुवकों ने अपना आवेदन साहब को दिया पर ये क्या बड़े साहब के रहते छोटे साहब थोड़े ही आवेदन लेंगे। उन्होंने बड़े साहब की तरफ इशारा करते हुए आवेदन देने युवाओं को कहा। युवाओं ने अपनी मांग से बड़े साहब को अवगत करवाया जहाँ पर बड़े साहब ने अपनी फार्मेलटी निभाते हुए कागज छोटे बाबू को सौंप दी।
युवाओं ने जिस काम के लिए मुझसे आग्रह किया था उसका समय भी आ गया । बड़े साहब भी समझ गए और खड़े होकर एक रूखी स्माइल के साथ फोटोसेशन करवा लिया।
अचानक बड़े साहब की नजर हम पर गयी और हमें पूछ बैठे आप लेखक हो न , आजकल क्या कर रहे हो? ग्रुप में खूब लिखते हो? हमने शालीनता से जवाब देते हुए कहा – साहब .. बस लिखता ही हूँ…। लिखने का शौक़ जो है । साहब फिर बोले बड़ी परेशानी है आपको ……..???? बस ये बोलकर साहब घुनघुनाते हुए चुप हो गए और मेज पर रखे दस्तावेज देखने लग गए। हमने भी बड़े साहब से अपने मधुर वाणी से प्रस्थान हेतु आज्ञा ले ली। साहब कहना तो बहुत कुछ चाहते थे पर क्या कहते स्वतंत्रता की अभिव्यक्ति की आजादी को अब समझ