पदमा देवी की वापसी को किसी दुराग्रह से जोड़ना उचित नहीं है।
खैरागढ़। राजनैतिक रूप से खैरागढ़ का उसमें , खासतौर से राजपरिवार का प्रदेश में ही नहीं देशभर में गौरवशाली इतिहास रहा है। संगीत और कला की नगरी का नाम, मान सम्मान हमेशा राजपरिवार के इर्दगिर्द ही मंडराता रहा है। मेजर राजा बहादुर वीरेंद्र बहादुर सिंह, रानी साहिबा पद्मावती देवी सिंह, राजकुमार शिवेंद्र बहादुर सिंह, रानी रश्मिदेवी सिंह, गीतादेवी सिंह राजपरिवार के ये ऐसे कोहिनूर हीरे की तरह सदस्य रहे हैं , जिनके नाम और काम को आमजन मानस आज भी याद करता है। लेकिन इन सबमें युवराज देवव्रत सिंह इन सबके हर दिल अजीज शुरू से ही रहे। नम्रता, सहनशीलता , से भरे व्यक्त्तिव की मिसाल उनके रहते तक और एकाएक दुनिया से अचानक अलविदा हो जाने के बाद भी लोग आज तक स्मरण कर रहे हैं। इस इलाके का ऐसा कोई भी शख्स नहीं होगा जिनसे उनकी गाहे-बगाहे मुलाकात नहीं हुई होगी।काम करने के तौर तरीकों को लेकर जरूर देवव्रत सिंह की आलोचना पहले होती रही हों पर बारह साल के राजनैतिक वनवास के बाद उनकी ये आदत भी काफी पीछे छूट गई थी। वक्त के पाबंद उन्हें दिखने लगे थे, तो वहीं अपने जनकल्याण सोच के कार्यों को लेकर बड़ी गंभीरता दिख रही थी ।लेकिन काल ने और कुछ तय कर रखा था, अचानक दीपपर्व के दिन उनका निधन हो गया । व
वहीं उनके समर्थको में घोर निराशा के बादल छा गई, लेकिन राजा देवव्रत सिंह ने राजपरिवार के संस्कार को निरन्तर जारी रखने अपने पीछे अपना वारिस छोड़ रखा है । वहीं आज नियति का विधान भी देखिए बच्चों को हर घर में उनको अभिभावक मिल रहे हैं। इस बीच ये बात निकल के आ रही है कि 2016 मे किसी कारणवश लंबी राशि लेकर दिवंगत राजा से जुदा होने वाली पत्नि पद्मा देवी सिंह किस लालच में विधानसभा की दावेदारी कर रही है? तो इसका जवाब नैतिकता के आधार पर सादे एवं सरल शब्दो मे दिया जा सकता है ।किंतु राजा देवव्रत सिंह के संस्कार और राजपरिवार का लहू इन बच्चों को इसका जवाब देने से कहीं रोक रहा है।सवाल करने वालों को यह समझ लेना चाहिए कि राजा देवव्रत सिंह और पद्मा देवी सिंह के बीच किन-किन शर्तो और वादों के आधार पर आपसी राजीनामा के तहत अलगाव हुआ है। देवव्रत सिंह ने कोर्ट में लिख कर दिया है कि, पद्मा सिंह अन्यत्र विवाह नहीं करने की दशा तक , कमल विलास पैलेस और उदयपुर आवास में निर्बाध और बिना रोकटोक के आना जाना कर सकती हैं। वहीं रूक भी सकती हैं साथ ही बच्चो के साथ समय बीता सकती हैं। इसलिए बाहरी लोगों के दुष्प्रचार को सिरे से खारिज किया जाना उचित ही होगा। वहीं हमारा सबसे बड़ा सवाल यह है कि बच्चों की वाजिब और सही देखभाल करने जन्मदायिनी माता सारे गिले शिकवे नहीं भूलेगी तो कौन भूलेगा? उनके जीवित रहते बच्चे किसकी छांव में आराम की नींद लेंगे? क्या उनकी जगह कोई और ले सकता है ? नहीं ना! तो फिर इस स्थिति में पद्मा सिंह की वापसी को राजनैतिक लालसा या संपत्ति के दुराग्रह से जोडऩा सही नहीं होगा। बच्चे बहुत मासूम हैं उन्हें वर्तमान हालातों के चलते माँ की आँचल की छाव की जरूरत है। उन्हें अपने पिता के पदचिन्हों पर चलते हुए अपने पिता के द्वारा अपनी जनता के प्रति देखे हुए वो तमाम जनकल्याणकारी सपनों को पूरा करना है।