
सच छिपता नहीं आख़िर एक दिन सामने आ ही जाता है।
यह एक काल्पनिक कहानी है। हमारा ध्येय आपको इस कहानी के माध्यम से सत्य की राह पर चलना सिखाना है ।
कहानी है एक ऐसे सियासती शहर की जिसकी तूती समूचे क्षेत्र में बजती है, वैसे अगर देखा जाए तो, सियासती दृष्टिकोण से पूरे प्रदेश में इसका डंका बजती है। इस नगर में एक हरन नाम का सिदा साधा युवक था । जो एक सरकारी वेतनभोगी मुलाजिम था जिससे उसका जीवन व्यापन चलता था। अचानक हरन की मित्रता नगर के कुछ मतलबी एवं शॉर्टकट में लखपति बनने के शौंक रखने वाले युवाओं से हो गयी। जो एक तरह से भूमाफिया का रैकेट चलाते थे। इनका एकमात्र काम था ऐसे गरीब किसानों को ढूंढना जिनकी माली हालत कमजोर हो चली थी तथा ऐसे लोग जो बैंक के कर्जे से पूरी तरह से डूबे हों। जिसे चुकता करने में वो असक्षम हों, जिसकी सटीक जानकारी हरन से मिल सकती थी। हालांकि नगर में हरन जैसे कई चेहरे थे। पर युवा में वह एकमात्र अकेला था । स्वार्थ के चलते पहले हरन से मीठी और चिकनी चुपड़ी बातें कर कुछ उसकी आर्थिक सहयोग कर उसे अपने झांसे के भरोसे में लिया गया। जिसके बाद वह भी इस खेल में उनके रंग में रंग गया। इस खेल का सृजन कर्ता इंद्र सरेवाल , जय होबिया थे जो, जमीन खरीदी बिक्री का काम करते थे । इनका प्रमुख व्यसाय किसानों को खातू कचरा बेचने और उनकी दैनिक जीवन में उपयोग की जाने वाली मादक समानों का व्यापार करना था। लेकिन व्यापार का सारा फोकस किसानों को ब्याज में पैसा देकर उनकी ज़मीन खरीदना था। इनके पास किसी तरह का कोई लाइसेंस नहीं था। ये सिलसिला कई सालों तक खरगोश की चाल की तरह चलता रहा । जिससे ये लोग बहुत से धन दौलत इक्कट्ठा करने में कामयाब हो चुके थे। मार्केट में इनकी तूती बजने लगी किसी को भी ब्याज में पैसे की जरूरत होती तो किसान अपनी जमीन के कागजात इनके पास ही गिरवी रखता या देदेजी निकालने इन्हें ठेका देता। इनका यह गोरख धंधा काफी फलफूल गया था।
अचानक एक सुबह खबर आई कि खाखी ने किसी फर्म के व्यक्ति को उठा लिया है , उस पर आरोप लग रहे थे कि इसने फर्म का पैसे गबन कर गोलमाल किया है। पूछताछ में सात से आठ नगर के धन्ना सेठों का नाम उजागर खाखी के सामने किया गया । जो कहानी के असल खिलाड़ी थे जिनका मुख्य व्यवसाय ब्याज का धंधा कर गरीब किसानों को अपने फैलाये पैसे के मोह जाल में फांस कर लूटना था। उनकी जमीनों पर अपना ब्याज के बीज बो कर चक्रवृद्धि ब्याज जोड़कर फसल काटना था । जिसे यदि किसान समय पर नहीं चुका पाता तो उसकी ज़मीन पर अपना ब्याज की सीढ़ी रखकर खड़ा हो जाते थे। बाद में योजनाबद्ध तरीके से चौगुना कीमत पर उसी ज़मीन को दूसरे खरीदार को बेच कर सोना चांदी काटते थे।
खैर….. मामला लांखों रुपये की हेरा फेरी का था. जहां न्याय की पहली सीढ़ी पर सात आठ लोग खड़े थे , वहीं काले कुरथे की याराना जोड़ी बैशाखी के सहारे अपनी कुटिलता लिए पंडित जी से अजेय आशीर्वाद लेकर कोने में बैठकर अपनी रणनीति तैयार कर रहे थे।…..
पार्ट 2 coming soon……..